Farmers-Protest
फोटो: सोशल मीडिया
दिल्ली की सीमा पर किसान मोदी सरकार के खिलाफ धरना दे रहे हैं. करीब चार हफ्ते से किसान नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार के अड़ियल रुख के चलते गतिरोध जारी है. मोदी सरकार से साथ किसानों की 6 दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन नतीजा नहीं निकला और कड़ाके की ठंड में किसान खुले आसमान के नीचे धरना देने को मजबूर हैं. ऐसे में मोदी सरकार की ओर से एक बार फिर से बातचीत का प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन किसानों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. किसान संगठन की ओर से कहा गया कि हम तीनों कानूनों में किसी भी प्रकार के बदलाव की बात नहीं कर रहे बल्कि तीनों कानूनों को निरस्त करने की बात हो रही है.
बता दें कि सिंघु बॉर्डर पर सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए किसान संगठनों की बैठक बुलाई गई थी. बैठक के बाद किसान संगठनों ने कहा कि हम तीनों कानूनों में किसी भी प्रकार के बदलाव की बात नहीं कर रहे बल्कि इन कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं. उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर जो प्रस्ताव सरकार से आया है उसमें कुछ भी साफ नहीं और स्पष्ट नहीं है.
किसान संगठनों की ओर से कहा गया कि सरकार की ओर से आया प्रस्ताव इतना खोखला और हास्यास्पद है कि उस पर उत्तर देना उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि हम तैयार हैं लेकिन सरकार ठोस प्रस्ताव लिखित में भेजे और खुले मन से बातचीत के लिए बुलाए. किसानों की ओर से कहा गया कि सरकार निरर्थक प्रस्ताव को दोहराने के बजाए ठोस प्रस्ताव भेजे ताकि उसको एजेंडा बनाकर हम सरकार से बात कर सकें.
स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव ने कहा कि यूनाइटेड फार्मर्स फ्रंट ने आज सरकार को एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि सरकार को यूनाइटेड फार्मर्स फ्रंट द्वारा पहले लिखे गए पत्र पर सवाल नहीं उठाना चाहिए क्योंकि यह सर्वसम्मत से लिया गया फैसला था. सरकार का नई चिट्ठी किसान संगठनों को बदनाम करने की एक नई कोशिश है.
योगेंद्र यादव ने कहा कि हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वे उन निरर्थक संशोधनों को न दोहराएं जिन्हें हमने अस्वीकार कर दिया है. लेकिन लिखित रूप में एक ठोस प्रस्ताव लेकर आएं ताकि इसे एक एजेंडा बनाया जा सके और बातचीत की प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू की जा सके.

राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार कक्का ने कहा कि हम सरकार से फलदायी बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाने का अनुरोध करते हैं. यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट भी कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को निलंबित कर दिया जाए. इससे वार्ता को बेहतर माहौल मिलेगा.

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