देश के इतिहास में गुरुवार (10 दिसंबर) का खास दिन के तौर पर दर्ज किया जाएगा. क्योंकि इस दिन लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन की नींव रखी गई. इसका मतलब ये नहीं कि अबतक हमारा कोई संसद भवन नहीं था. बल्कि अभी तक हमारा जो संसद भवन है उसका निर्माण आजादी से पहले हुआ था. एडविन लुटियंस के डिजाइन के आधार पर बनाया गया भारत का संसद भवन 1921 में बनकर तैयार हो गया था. इसे बनाने में उस वक्त 83 करोड़ रुपये का खर्च आया था. यह पूरा परिसर 2.4 हेक्टेयर इलाके में बना है. वहीं भारतीय संसद के नए भवन को अब 971 करोड़ रुपए की लागत से बनाया जा रहा है. इसे करीब 64500 वर्ग मीटर के इलाके में बनाया जाएगा. साल 2022 तक यह बनकर तैयार हो जाएगा. लेकिन अब इसके पास ही नया संसद भवन बनना शुरू हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नए संसद भवन की नींव रखी है. भूमि पूजन और सर्वधर्म प्रार्थना के बाद यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन हुआ.
प्रधानमंत्री ने नये संसद भवन के शिलान्यास को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील के पत्थर बताते हुए कहा कि पुराने संसद भवन ने स्वतंत्रता के बाद देश को दिशा दी, तो नया भवन आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का गवाह बनेगा. पुराने भवन में देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काम हुआ, तो नये भवन में 21वीं सदी के भारत की आकांक्षाएं पूरी की जाएंगी. जैसे आज इंडिया गेट से आगे राष्ट्रीय समर स्मारक ने नयी पहचान बनाई है, वैसे ही संसद का नया भवन अपनी पहचान स्थापित करेगा. आने वाली पीढ़ियाँ नये संसद भवन को देखकर गर्व करेंगी कि यह स्वतंत्र भारत में बना है। आजादी के 75 वर्ष का स्मरण करके इसका निर्माण हुआ है.
उन्होंने कहा कि कोई मंदिर बनता है तो जब तक प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो, तब तक वह एक भवन या इमारत मात्र ही होती है. उन्होंने कहा कि संसद के नये भवन की लोकतंत्र के नये मंदिर के रूप में प्राण प्रतिष्ठा संसद में चुनकर आने वाले प्रतिनिधि करेंगे जिसकी कोई विधि निश्चित नहीं है. उन्होंने कहा “भारत की एकता-अखंडता को लेकर किए गए उनके प्रयास, इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की ऊर्जा बनेंगे. जब एक-एक जनप्रतिनिधि, अपना ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, अपना अनुभव पूर्ण रूप से यहाँ निचोड़ देगा, उसका अभिषेक करेगा, तब इस नये संसद भवन की प्राण-प्रतिष्ठा होगी.”
मोदी ने भगवान बसवेश्वर के अनुभव मंडपम्, तमिलनाडु के उत्तरामेरु गांव, वैशाली की लोकतांत्रिक व्यवस्था के उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के लिए लोकतंत्र जीवन मूल्य एवं जीवन पद्धति है, संस्कार हैं, राष्ट्र जीवन की आत्मा है. भारत का लोकतंत्र, सदियों के अनुभव से विकसित हुई व्यवस्था है. भारत के लिए लोकतंत्र में, जीवन-मंत्र भी है, जीवन-तत्त्व भी है और व्यवस्था का तंत्र भी है. उन्होंने कहा कि भारत के इस लोकतंत्र के बारे में जब पश्चिमी जगत समझेंगे तब दुनिया कहेगी कि भारत लोकतंत्र का जनक है – ‘इंडिया इज़ मदर ऑफ डेमोक्रेसी’.
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के समय एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व पर संदेह जताया गया था. अशिक्षा, गरीबी, सामाजिक विविधता सहित कई तर्कों के साथ यह भविष्यवाणी कर दी गई थी कि भारत में लोकतंत्र असफल हो जायेगा. हमें गर्व है कि हमारे देश ने उन आशंकाओं को न सिर्फ गलत साबित किया, बल्कि 21वीं सदी की दुनिया भारत को अहम लोकतांत्रिक ताकत के रूप में आगे बढ़ते देख रही है.
उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र, हमेशा से शासन के साथ-साथ मतभेदों को सुलझाने का माध्यम भी रहा है. मतभेदों के लिए हमेशा जगह हो लेकिन संवादहीनता कभी न हो, इसी लक्ष्य को लेकर हमारा लोकतंत्र आगे बढ़ा है. नीतियों में अंतर हो सकता है, भिन्नता हो सकती है, लेकिन हम जनता की सेवा के लिए हैं, इस अंतिम लक्ष्य में कोई मतभेद नहीं होना चाहिए. वाद-संवाद संसद के भीतर हो या संसद के बाहर, राष्ट्रसेवा का संकल्प, राष्ट्रहित के प्रति समर्पण लगातार झलकना चाहिए.
मोदी ने कहा कि जनप्रतिनिधियों का हर फैसला राष्ट्र प्रथम की भावना से ही होना चाहिये. हमारे हर फैसले में राष्ट्रहित सर्वोपरि रहना चाहिए. राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि के लिए हम एक स्वर में खड़े हों, यह बहुत जरूरी है. राष्ट्र के विकास के लिए राज्यों का विकास, राष्ट्र की मजबूती के लिए राज्यों की मजबूती, राष्ट्र के कल्याण के लिए राज्यों का कल्याण – इस मूलभूत सिद्धांत के साथ काम करने का हमें प्रण लेना है.
प्रधानमंत्री ने देशवासियों का आह्वान किया कि वे नये संसद भवन के शिलान्यास के साथ ही ‘भारत सर्वोपरि’ का संकल्प लें और उसे 2047 तक अपनी आराधना का हिस्सा बना लें. आजादी की सौवीं वर्षगाँठ के मौके पर भारत की सर्वोन्नति की कामना के साथ यह संकल्प लेना है. उन्होंने कहा, “हमें संकल्प लेना है ‘भारत सर्वोपरि’ का. हम सिर्फ और सिर्फ भारत की उन्नति, भारत के विकास को ही अपनी आराधना बना लें. हमारा हर फैसला देश की ताकत बढ़ाये. हमारा हर निर्णय, हर फैसला, एक ही तराजू में तौला जाए, और वह है- देश का हित सर्वोपरि. हम भारत के लोग यह प्रण करें कि हमारे लिए देश के संविधान की मान-मर्यादा और उसकी अपेक्षाओं की पूर्ति, जीवन का सबसे बड़ा ध्येय होगी.”
पीएम मोदी ने कहा कि आज का दिन बहुत ही ऐतिहासिक है और भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील के पत्थर की तरह है. हम भारत के लोग मिलकर अपनी संसद के इस नये भवन को बनाएंगे और इससे सुंदर क्या होगा, इससे पवित्र क्या होगा कि जब भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष का पर्व मनाये तो उस पर्व की साक्षात प्रेरणा, हमारी संसद की नयी इमारत बने.
पीएम ने कहा, “मैं अपने जीवन में वो क्षण कभी नहीं भूल सकता जब 2014 में पहली बार एक सांसद के तौर पर मुझे संसद भवन में आने का अवसर मिला था. तब लोकतंत्र के इस मंदिर में कदम रखने से पहले, मैंने सिर झुकाकर, माथा टेककर, लोकतंत्र के इस मंदिर को नमन किया था.” उन्होंने कहा कि वर्तमान संसद भवन ने आजादी के आंदोलन और फिर स्वतंत्र भारत को गढ़ने में अपनी अहम भूमिका निभाई है. आजाद भारत की पहली सरकार का गठन भी यहीं हुआ और पहली संसद भी यहीं बैठी.
पीएम मोदी ने कहा कि संसद के शक्तिशाली इतिहास के साथ ही यथार्थ को स्वीकारना उतना ही आवश्यक है. यह इमारत अब करीब 100 साल की हो रही है. बीते वर्षों में इसे जरूरत के हिसाब से अपग्रेड किया गया. कई नये सुधारों के बाद संसद का यह भवन अब विश्राम माँग रहा है. उन्होंने कहा कि वर्षों से नये संसद भवन की जरूरत महसूस की गई है. ऐसे में हम सभी का दायित्व है कि 21वीं सदी के भारत को एक नया संसद भवन मिले. इसी कड़ी में ये शुभारंभ हो रहा है.
कार्यक्रम को अंतर संसदीय संघ के सदस्य देशों की संसदों के सभापतियों, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों एवं विदेशी नेताओं ने भी इंटरनेट के माध्यम से देखा.
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