मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ कई प्रदेशों के किसान दिल्ली सीमा पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों की मांग है कि ये कानून किसान विरोधी हैं, लिहाजा इन्हें निरस्त किया जाए. अब तक किसानों और केंद्र सरकार के बीच 6 दौर की वार्ता हो चुकी है. 8 दिसंबर को हुई छठे दौर की वार्ता के बाद आज सरकार ने किसानों को लिखित में एक प्रस्ताव भेजा था. जिसमें साफ था कि कानून निरस्त नहीं किए जाएंगे. कुछ संशोधनों के लिए सरकार राजी थी लेकिन किसानों ने केंद्र के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. किसानों ने कहा है कि तीनों कानूनों को जबतक नहीं हटाया जाएगा तबतक उनका आंदोलन जारी रहेगा.
तो आइए, हम आपको बताते हैं कि सरकार की ओर से क्या प्रस्ताव भेजा गया था और इसमें क्या सुझाव दिए गए थे-
1. मंडी समितियों द्वारा स्थापित मंडियां कमजोर होंगी और किसान निजी मंडियों के चंगुल फंस जाएगा की शंका पर सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया है कि अधिनियम में संशोधित करके यह प्रावधानित किया जा सकता है कि राज्य सरकार निजी मंडियों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था लागू कर सके. साथ ही ऐसी मंडियों से राज्य सरकार एपीएमसी मंडियों में लागू सेस/शुल्क की दर तक सेस/शुल्क निर्धारित कर सकेगी.
2. कृषि सुधार कानूनों को निरस्त करने की मांग पर सरकार की ओर से कहा गया कि कानून के वे प्रावधान जिन पर किसानों को आपत्ति है, उन पर सरकार खुले मन से विचार करने को तैयार है.
3. किसान को विवाद समाधान हेतु सिविल न्यायालय में जाने का विकल्प नहीं होने के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया कि शंका के समाधान हेतु विवाद निराकरण की नए कानूनों में प्रावधनित व्यवस्था के अतिरिक्त सिविल न्यायालय में जाने का विकल्प भी दिया जा सकता है.
4. किसानों की भूमि की कुर्की हो सकेगी के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया है कि प्रावधान में स्पष्ट है, फिर भी किसी भी प्रकार के स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो तो उसे जारी किया जाएगा.
5. किसान की भूमि पर बड़े उद्योगपति कब्जा कर लेंगे. किसान भूमि से वंचित हो जाएगा के मुद्दे पर कहा गया है कि प्रावधान पूर्व से ही स्पष्ट है फिर भी यह और स्पष्ट कर दिया जाएगा कि किसान की भूमि पर बनाई जाने वाली संरचना पर खरीददार द्वारा किसी प्रकार का ऋण नहीं लिया जा सकेगा और न ही ऐसी संरचना उसके बंधक द्वारा रखी जा सकेगी.
6. कृषि अनुबंधों के पंजीकरण की व्यवस्था नहीं है, के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया कि जब तक राज्य सरकारें रजिस्टीकरण की व्यवस्था नहीं बनाती हैं तब तक सभी लिखित करारों की एक प्रतिलिपि करार पर हस्ताक्षर होने के 30 दिन के भीतर संबंधित एसडीएम कार्यालय में उपलब्ध कराने हेतु उपयुक्त व्यवस्था की जाएगी.
7. बिजली संशोधन विधेयक, 2020 को समाप्त किए जाने पर सरकार की ओर से कहा गया कि किसानों की विद्युत बिल भुगतान की वर्तमान व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होगा.
8. पैन कार्ड के आधार पर किसानों से फसल खरीद की व्यवस्था होने पर धोखे की आशंका को लेकर सरकार की ओर से कहा गया कि शंका के समाधान हेतु राज्य सरकारों को इस प्रकार के पंजीकरण के लिए नियम बनाने की शक्ति प्रदान की जा सकती है जिससे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार राज्य सरकारें किसानों के हित में नियम बना सकें.
9. समर्थन मूल्य पर सरकारी एजेंसी के माध्यम से फसल बेचने का विकल्प समाप्त होने की आशंका और उपज का व्यापार निजी हाथों में जाने की आशंका को लेकर सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार एमएसपी की वर्तमान खरीदी व्यवस्था के संबंध में लिखित आश्वासन देगी.
10. सरकार की ओर से कहा गया कि देश के किसानों के सम्मान में और पूरे खुले मन से केंद्र सरकार द्वारा पूरी संवेदना के साथ सभी मुद्दों के समाधान का प्रयास किया गया है. अतः सभी किसान यूनियनों से अनुरोध है कि वे अपना आंदोलन समाप्त करें.
अब आगे ये है किसानों का प्लान-
अब किसानों ने मोदी सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है और आंदोलन तेज करने की घोषणा की है. आंदोलनकारी किसानों ने ऐलान किया है कि रिलायंस के प्रोडक्ट्स का बहिष्कार किया जाएगा. 12 दिसंबर को दिल्ली-जयपुर, दिल्ली-आगरा हाइवे को 12 दिसंबर को रोका जाएगा. 14 दिसंबर को देशभर में धरना-प्रदर्शन होगा. इस दौरान दिल्ली की सड़कों को जाम किया जाएगा. सरकार के मंत्रियों का घेराव होगा. 14 दिसंबर को बीजेपी के ऑफिस का घेराव होगा. 14 दिसंबर को हर जिले के मुख्यालय का घेराव होगा. 12 दिसंबर को सभी टोल प्लाजा फ्री करेंगे. कृषि कानूनों के वापस होने तक आंदोलन जारी रहेगा.