एस. सिंहदेव
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बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के 71 सीटों के लिए बुधवार को मतदान होगा। इन सीटों के लिए सोमवार को ही चुनाव प्रचार थम गया है। करीब दो महीने से चल रहे धुआंधार चुनाव प्रचार में तमाम तरह की बातें सामने आईं। आरोप प्रत्यारोप में खुद को बेहतर और दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश की गई। हर कोशिश की गई कि बिहार के मतदाता उनकी बातों से सहमत होकर उनके हक में मतदान करें और उन्हें सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाएं। मौजूदा मुख्यमंत्री व जदयू नेता नीतीश कुमार राज्य में पिछले 15 वर्षों से सत्तासीन हैं। इससे पहले लालू यादव व उनकी पत्नी राबड़ी यादव 15 वर्षों तक सत्ता में रहीं। चूंकि दोनों का साशनकाल समान हो चुका है, इसलिए उनकी तुलना लाजमी हो जाती है। लेकिन नेता तो ठहरे चतुर, वे दूसरों के 15 साल का हिसाब तो मांगते हैं, लेकिन अपने 15 साल का हिसाब नहीं देते।

नीतीश कुमार के पास पिछले 15 वर्षों के दौरान किए गए कामों की लंबी सूची हो सकती है, लेकिन जदयू समेत राजग गठबंधन के दूसरे नेता लालू यादव के 15 वर्षों के शासनकाल की चर्चा ज्यादा करते हैं। उधर, तेजस्वी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व गठबंधन सरकार से पिछले 15 वर्षों का हिसाब मांगते हैं। दिलचस्प तो यह है कि वे उस अवधि का भी हिसाब मांगते हैं, जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार पर शासन किया। आपको तो याद ही होगा कि पिछले चुनाव में राजद व जदयू का गठबंधन था और भाजपा, आरएलएसपी व लोजपा साथ थे। हालांकि, राजद व जदयू का बेमेल गठबंधन ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया। जल्द ही नीतीश राजग में लौट आए। इसके बाद राज्य की राजनीति ने करवट बदल ली और उपमुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे तेजस्वी यादव को विपक्ष में बैठना पड़ा। तेजस्वी के लिए चचा नीतीश बेवफा हो गए। आप जो तस्वीर देख रहे हैं, वह उस समय की है जब लालू और नीतीश एक साथ बिहार की सत्ता का संचालन कर रहे थे। लालू किंगमेकर थे। नीतीश के भी और तेजस्वी के भी।

इस चुनाव में 15 साल की उपलब्धियों के बजाय नाकामियों को गिनाने की वजहें हैं। राजद के बाद उसके 15 साल के शासन की उपलब्धियों का कोई ब्योरा नहीं है। राजद नेता राज्य में खुले शिक्षण संस्थानों का क्रेडिट लेने का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन जनता इतनी भी भोली नहीं है कि वह केंद्रीय संस्थानों का क्रेडिट राज्य सरकार को दे दे। इसके बाद राजद के पास कुछ बचता ही नहीं। उधर, जदयू को लगता है कि जनता उनकी उपलब्धियों को उतना तवज्जो नहीं देगी, जितना कि राजद की नाकामियों को। इसलिए, वह बिहार के आधारभूत ढांचे में किए गए अहम परिवर्तन की उपलब्धियों को गिनाने की बजाय लालू राज के 15 साल की विफलताओं को जनता के सामने ज्यादा मजबूती से रख रहा है। गठबंधन के अन्य दल भी ऐसा ही कर रहे हैं। दरअसल, वे याद दिलाना चाहते हैं लालू राज में उद्योग के नाम पर अपहरण उद्योग पनप रहा था। नक्सलाइट और सनलाइट पनप रहे थे। सीधे शब्दों में कहें तो जातीय संघर्ष चरम पर था। सड़क और बिजली की आधारभूत संरचना ही विकसित नहीं हुई थी। गांवों तक सड़क की बात तो बेमानी थी। वे जनता को बताना चाहते हैं कि क्या एक बार फिर राज्य में राजद का शासन लाकर पुराने दिनों में लौटना चाहते हैं।

 

 

 

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