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जिसने किया हो बिहार के लिए काम, वही पूछे 'बिहार में का बा'
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जिसने किया हो बिहार के लिए काम, वही पूछे ‘बिहार में का बा’

एस. सिंहदेव
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बिहार में चुनाव है। चुनाव से ठीक पहले बिहार की माटी में पैदा हुए खांटी देसी अभिनेता मनोज बाजपेयी ने ‘मुंबई में का बा’ रैप से धूम मचा दिया। दरअसल, उनका यह रैप सांग प्रवासी कामगारों की मनोदशा को व्यक्त करता है। सबकुछ होते हुए भी मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पलायन की मजबूरी को बताता है। जड़ में जाएं तो बिहार चुनाव से ठीक पहले इस रैप सांग की सार्थकता समझ में आएगी। आप समझ पाएंगे कि इस रैप सांग का भी चुनाव से कोई न कोई संबंध है। लेकिन, इसके विषय ने श्रोताओं और दर्शकों के लिए व्याख्या का विकल्प छोड़ रखा है। वह जैसे चाहें इसकी व्याख्या कर सकते हैं।
इस गाने ने विपक्ष को पैरोडी बनाने का मौका दे दिया। सत्ता से दूर बैठे दल ही नहीं बल्कि उनके समर्थक वर्ग के लोग पूछने लगे-बिहार में का बा। बिहार की धरती पर पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति, चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में रहने को मजबूर हो, उसके दिल में यह सवाल चूभता है। वह मौजूदा मुख्यमंत्री से तो नाराज होता ही है, उनसे भी नाराज होता है जो पूछते हैं कि बिहार में का बा। दरअसल, यह सवाल बेशर्मी और नासमझी की कोख से पैदा हुआ है। यह सब जानते हैं कि बिहार में का बा जैसे सवाल पूछने का हक उसे ही होगा जिसने बिहार के लिए कुछ किया हो। नीतीश कुमार पिछले 15 साल से सत्ता में हैं। आज गांव-गांव में सड़कें, खड़ंजा, नाली व बिजली पहुंच चुकी है। रोजगार की भी व्यवस्था हो रही है। हां, रफ्तार कम हो सकती है। लेकिन, जब नीतश के 15 साल की तुलना लालू के 15 साल से करेंगे तो आपको विकास नजर आने लगेगा।

राजद नेता और लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव जब यह पूछते हैं कि बिहार में का बा, तो यह सवाल हर बिहारी के मन में चूभ जाता है। बिहारी तिलमिला जाता है। यह स्वभाविक भी है, क्योंकि यह सवाल बिहार के विकास से नहीं बल्कि बिहारी के स्वाभिमान से जुड़ा है। जब आप सरकार में थे तब रोजगार के नाम पर क्या था? आज आप सरकार से बाहर हैं तो रोजगार के लिए क्या किया? एक बार अपनी गिरेबां में झांक कर देखिए और बताइएगा कि लालू यादव की पृष्ठभूमि क्या है? एक गरीब किसान का बेटा लालू यादव और उसका परिवार उसी बिहार में चंद वक्त में धन्नासेठ हो जाता है तो यह सवाल करने का हक वह स्वतः खो देता है। अगर बिहार में कुछ नहीं होता तो लालू यादव व उनके परिवार के लोग धन्नासेठ कैसे हो जाते। लालू यादव और उनका परिवार तो एक उदाहरण भर है। यह सवाल हर उस नेता से है, जिनकी संपत्ति गरीब बिहार में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जाती है। उन उद्योगपतियों और अफसरों से भी है जो बिहार की छाती पर मूंग दलकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। इसलिए, अगली बार जब अब ‘बिहार में का बा’ गाना गाएं या किसी से सवाल पूछें तो उससे पहले खुद से सवाल पूछें कि आपने बिहार के लिए क्या किया।

 

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