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संवाददाता
प्रखर प्रहरी
दिल्लीः भारत चीन के साम्राजवाद के खिलाफ तन कर खड़ा है। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत ने विजयादशमी के मौके पर कही। उन्होंने आज महाराष्ट्र के नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में शस्त्र पूजा की। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि चीन ने अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास वह सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है। भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय एवं वीरता का परिचय दिया, इससे चीन को अनपेक्षित धक्का मिला लगा है।
संघ प्रमुख के संबोधन की महत्वपूर्ण बातेंः-

– संघ प्रमुख ने कहा कि हम कह सकते हैं कि कोरोना महामारी से होने वाला नुकसान भारत में कम है। कोरोना की बीमारी कैसे फैलेगी इसे समझकर हमारे शासन-प्रशासन ने उपाय बताए। उनका अमल हो, इसकी तत्परता से योजना बनाई। उन्होंने इसका बढ़ा-चढ़ाकर इसका वर्णन किया, जिससे जनता में भय आ गया। उसका फायदा भी हुआ कि जनता अतिरिक्त सावधान हो गई।
-उन्होंने कहा कि जो लोग अपना रोजगार बंद करके अपने-अपने गांव गए थे, वे वापस आने लगे हैं। बहुत अधिक तादाद वापस आने वालों की है। जो अभी अपने ही गांवों में टिके हैं, वे वहीं रोजगार ढूंढेंगे। ऐसे में अब रोजगार पैदा करना है। शिक्षकों का वेतन बंद है, कई को अभी भी सबको पूरा वेतन नहीं मिल पा रहा। अब वे घर कैसे चलाएं, इसकी समस्या है। अभिभावकों के पास बच्चों की फीस भरने का पैसा नहीं है। ये सारी व्यवस्था करना सेवा का आयाम ध्यान में आता है। ये सब परिस्थिति है, लेकिन इससे धीरे-धीरे बाहर आने वाले हैं।
-उन्होंने कहा किहमारे जीवन में कुछ कृत्रिम चीजें घुस गई थीं, जो इस दौर में कम हो गईं। इससे यह अनुभव हुआ कि इनके न रहने से जीवन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्या आवश्यक है और क्या नहीं, ये पता लग गया है। हमें हवा में ताजगी का अनुभव हुआ। नदियों में हमने स्वच्छता देखी।
– डॉ. भागवत ने कहा कि कोरोना महामारी में चाइना का नाम आता है, शंका है। चीन ने इस कालावधि में हमारी सीमाओं पर अतिक्रमण किया। यह उनका साम्राज्यवादी स्वभाव है, सब जानते हैं। इस बार भारत ने जो प्रतिक्रिया दी, उसकी वजह से वह सहम गया, क्योंकि भारत तन कर खड़ा होगा। भारत की सेना ने अपनी वीरता का परिचय दिया। अब दूसरे देशों ने भी चीन को आंख दिखाना शुरू किया है। हम स्वभाव मित्रता करने वाला है। हम लड़ने वाले नहीं हैं, लेकिन हमारी मित्रता की प्रवृत्ति को दुर्बलता न समझें। चीन को पहली बार समझ आया कि हम इतने कमजोर नहीं हैं।
– डॉ. भागवत ने कहा कि हिंदुत्व एक ऐसा शब्द है, जिसे पूजा से जोड़कर संकुचित किया गया है। संघ में इसका प्रयोग नहीं होता। हमारी मान्यता में यह शब्द अपने देश की पहचान को बताने वाला है। भारत को अपना मानने वाले और उसे अपने आचरण में लाने वाले सभी 130 करोड़ लोगों पर लागू होता है। जो इस समाज को तोड़ना चाहते हैं, वे इस शब्द से ही टीका-टिप्पणी से शुरुआत करते हैं। ‘हिंदू’ में विश्वभर की विविधताओं का सम्मान है।
– उन्होंने कहा कि हमारे यहां अनेक दल हैं। एक दल प्रयास करता है कि अगले चुनाव में सत्ता बदल जाए और हम बैठ जाएं, यह प्रजातंत्र में चलता है। यह स्पर्धा है, इसे स्वस्थ रूप से होना चाहिए, लेकिन हमारे भेद से समाज में विभाजन और कटुता पैदा हो, यह राजनीति नहीं है। यह ठीक नहीं है। भारत को दुर्बल करने के लिए विभाजित समाज बनाने के लिए कोशिश करने वाली शक्तियां हैं। दुनिया में भी हैं और भारत में भी हैं।
– संघ प्रमुख ने कहा कि कुछ लोग ‘भारत के टुकड़े हों’ कहते नजर आते हैं, वे संविधान और समाज के रखवाले बताकर समाज को उलटी पट्‌टी पढ़ाते हैं। बाबा साहब अंबेडकर ने जिसे अराजकता कहा है, ऐसी बातें सिखाने वाले ये लोग हैं। ये अपने निहित स्वार्थों के लिए ऐसी बात करते हैं।

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