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Google के खिलाफ अमेरिका में मुकदमा, गैर कानूनी तरीके से एकाधिकार जमाने का आरोप, जानें भारत में क्या होगा असर?

विदेश डेस्क

प्रखर प्रहरी

वाशिंगटनः दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमामल होने वाले सर्च इंजन गूगल (google) के खिलाफ अमेरिका में मुकदमा दर्ज हुआ है। यह केस अमेरिका के  जस्टिस डिपार्टमेंट और 11 राज्यों ने दर्ज किया है। गूगल पर अपना एकाधिकार जमाने और प्रतिस्पर्धा खत्म करने के लिए अवैध तरीके से ऐपल और स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों से एक्सक्लूसिव डील्स करने का आरोप है।

आपको बता दें कि किसी टेक्नोलॉजी फर्म के खिलाफ गत दो दशक में यह सबसे बड़ा मुकदमा है। इससे पहले 1998 में इसी तरह के आरोप माइक्रोसॉफ पर लगे थे और उसके खिलाफ भी केस दर्ज हुआ था। यह पहला मौका नहीं है, जब गूगल पर इस तरह के आरोप लगे हैं। Google पर यह आरोप पहले भी लगते रहे हैं। अब ऐसी रिपोर्ट्स आ रही हैं कि जापान और ऑस्ट्रेलिया भी यूरोप और अमेरिका के साथ मिलकर इस बड़ी टेक कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती देने की तैयारी में है।

आइए आपको बतातें हैं कि Google पर क्या आरोप लगे हैं? इन मुकदमों का क्या असर होगा है?

  • अमेरिका में Google के खिलाफ जस्टिस डिपार्टमेंट और 11 अलग-अलग राज्यों ने एंटीट्रस्ट केस किया है। Google पर आरोप है कि उसने बिजनेस में 90फीसदी से ज्यादा मार्केट हिस्सेदारी हासिल करने के लिए एक्सक्लूसिव डील्स की। इससे इन डिवाइस पर यूजर्स के लिए Google डिफॉल्ट सर्च इंजिन बन गया।
  • मोबाइल बनाने वाली कंपनियों, कैरियर्स और ब्राउजर्स को Google ने अपनी विज्ञापनों से होने वाली कमाई से अरबों डॉलर का पेमेंट किया, ताकि  उनके डिवाइस पर Google प्री-सेट सर्च इंजिन बन सके। इससे Google ने लाखों डिवाइस पर टॉप पोजिशन हासिल की और अन्य सर्च इंजिन के लिए खुद को स्थापित करने से रोक दिया।
  • Google पर आरोप है कि उसने और ऐपल और Google ने एक-दूसरे का सहारा लिया और अपने प्रतिस्पर्धियों को मुकाबले से बाहर कर दिया। अमेरिका में Google के सर्च ट्रैफिक में करीब आधा ऐपल के आईफोन्स से आया। वहीं, ऐपल के प्रॉफिट का पांचवां हिस्सा Google से आया।
  • Google ने इनोवेशन को रोक दिया। यूजर्स के लिए चॉइस खत्म की और प्राइवेसी डेटा जैसी सर्विस क्वालिटी को प्रभावित किया। Google ने अपनी पोजिशन का लाभ उठाया और अन्य कंपनियों या स्टार्टअप्स को उभरने या इनोवेशन करने का मौका ही नहीं छोड़ा। जस्टिस डिपार्टमेंट ने करीब एक साल की जांच के बाद यह मुकदमा दर्ज किया है।

  • वहीं Google के चीफ लीगल ऑफिसर केंट वॉकर ने इस मुकदमे बेबुनियाद बताया है। उनका कहना है कि लोग Google का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उन्होंने ऐसा करने का फैसला किया है। Google ने अपनी सर्विसेस का इस्तेमाल करने के लिए किसी के साथ जबरदस्ती नहीं की है।
  • केंट वॉकर का कहना है कि एंटी ट्रस्ट कानून के बहाने ऐसी कंपनियों के पक्ष लिया जा रहा है, जो मार्केट में कॉम्पीटिशन नहीं कर पा रही है। Google ऐपल और अन्य स्मार्टफोन कंपनियों को पेमेंट करता है ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए शेल्फ स्पेस मिल सके। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
  • केंद्र वॉकर के अनुसार अमेरिकी एंटी ट्रस्ट लॉ का डिजाइन ऐसा नहीं है कि किसी कमजोर प्रतिस्पर्धी को मजबूती प्रदान करें। यहां सबके लिए बराबर मौके हैं। यह मुकदमा कोर्ट में ज्यादा दिन तक टिकने वाला नहीं है। Google जो भी सर्विस यूजर्स को देता है, वह मुफ्त है। इससे किसी और को नुकसान होने की आशंका जताना गलत है।

क्या हो सकता है नतीजा?

  • ऐसे मुकदमों में सुनवाई लंबी चलती है और फैसला आने में दो-तीन साल लग जाते हैं। माइक्रोसॉफ्ट के खिलाफ भी 1998 में इसी तरह का मुकदमा दर्ज हुआ था, जो सेटलमेंट पर खत्म हुआ था।
  • Google के खिलाफ यूरोप में भी इसी तरह के आरोप लगे थे। यदि गूगल की हार होती है तो उसे कंपनी के स्ट्रक्चर में कुछ बदलाव करने होंगे। वहीं, यदि वह जीत गई तो यह बड़ी टेक कंपनियों को मजबूती देगा और उस पर काबू पाने की सरकारों की कोशिशों को झटका लगेगा।

 Google के खिलाफ क्या भारत में भी कार्रवाई हो सकती है?

  • भारत में सीसीआई यानी कॉम्पीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया का काम बाजार में किसी कंपनी के एकाधिकार को खत्म कर हेल्दी कम्पीटिशन को प्रमोट करना है। अमेरिका में जिस तरह का मुकदमा दाखिल हुआ है, उसी तरह की शिकायत की जांच सीसीआई पहले ही कर रहा है।
  • पिछले महीने Google बनाम पेटीएम के मुद्दे पर भी ऐसी ही स्थिति बनी थी,जब गूगल ने अपनी पॉजिशन का फायदा उठाते हुए पेटीएम (paytm) को प्लेट स्टोर से हटा दिया था, तो  पेटीएम ने यही आरोप लगाए थे कि Google अपने और दूसरे ऐप्स के बीच भेदभाव करता है।

 

 

 

Shobha Ojha

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