दिल्ली डेस्क
प्रखर प्रहरी
दिल्लीः अस्पतालों में सर्जरी तथा अन्य रोगों से ग्रसित मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी है। लॉकडाउन की समाप्ति के बाद सर्जरी के लिअ आने वाले मरीजों की संख्या में 50 से 75 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि देश में कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं लेकिन इसके लेकर लोगों के भय में कमी आई है और यहीं वजह है कि लोग अन्य रोगों का उपचार करवाने के लिए अस्पताल आने लगे हैं।
नई दिल्ली स्थित फोर्टिस- एस्कार्ट हार्ट इंस्टीट्यूट के ब्रेन एवं स्पाइन सर्जरी विभाग के निदेशक डॉ. राहुल गुप्ता तथा कई अन्य स्वास्थ्य संस्थानों के के विशेषज्ञों के अनुसार लॉकडाउन के दौरान कई अस्पतालों ने मरीजों को भर्ती करना बंद कर दिया था। यदि मरीज भर्ती किये जाते थे, तो कई प्रक्रियाओं को पालन करना पडता था। विशेषज्ञों का कहना है कि अस्पताल मरीज के कोरोना की चपेट में आने के भय से डर रहे थे। इसी वजह से जरूरी इलाज या सर्जरी को भी टाल रहे थे, लेकिन अब स्थितियां काफी हद तक बदल गई है।
डॉ. राहुल गुप्ता ने बताया कि फोर्टिस हॉस्पीटल में न्यूरो सर्जरी विभाग में पिछले तीन महीनों के दौरान 90 सर्जरी हुई जबकि न्यूरो एवं स्पाइन की समस्याओं से गंभीर रूप से ग्रस्त 170 मरीजों का इलाज किया गया। उन्होंने बताया कि उनके अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग ने लॉकडाउन लागू होने के बाद भी आवश्यक सेवाएं एवं आवश्यक सर्जरी जारी रखी थी। उन्होंने बताया कि 66 दिन के लॉकडाउन के दौरान 57 इमरजेंसी एवं सेमी–इमरजेंसी सर्जरी सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। इस समय हर माह 40 से अधिक प्रक्रियाएं सुरक्षित एवं कारगर तरीके से सम्पन्न होती हैं।
आपको बता दें कि देश में कोरोना को फैलने से रोकने के लिए 24 मार्च से चार चरणों में लॉकडाउन लागू किया गया था। इस दौरान अस्पतालों में मरीजों को इलाज में काफी दिक्कतें आई। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से पिछले दिनों लोकसभा में पेश किए गए आंकडों में कोरोना वायरस को लेकर 24 मार्च से लॉकडाउन होने के बाद अस्पतालों में ओपीडी इत्यादि पर काफी असर देखने को मिला। एम्स यानी
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में आम तौर पर एक माह में करीब तीन लाख मरीजों का ओपीडी तथा आईपीडी (भर्ती) दोनों मिलाकर उपचार होता था। लेकिन 24 मार्च से लेकर अब तक केवल 4.01506 मरीजों को ही उपचार मिल पाया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार इस वर्ष अप्रैल से जून के बीच देश के अस्पतालों में 24 फीसदी कम डिलीवरी हुई हैं जबकि पिछले वर्ष की तुलना में इस बार देश के अस्पतालों में 23.90 फीसदी महिलाओं की डिलीवरी हुई है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के सर्जन डॉ अभिषेक वैश्य ने बताया कि न सिर्फ एम्स जैसे सरकारी अस्पतालों में बल्कि निजी अस्पतालों में भी कमोबेश यही स्थिति रही लेकिन अब स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है। उन्होंने बताया कि हालांकि अस्पतालों में सावधानियां अब भी बरती जा रही है लेकिन अब अधिक संख्या में मरीजों को भर्ती किया जा रहा है। सर्जरी की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है।
कोविड -19 का संकट अभी समाप्त नहीं हुआ है और कब तक समाप्त होगा इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए अस्पतालों ने स्थाई तौर पर बदलाव किए हैं ताकि इस प्राण घातक विषाणु के संक्रमण को रोका जा सके। ऐसे में यदि किसी को ऐसी समस्या है जिसके लिए तत्काल इजाज या सर्जरी की जरूरत है तो उन्हें अस्पताल आने या चिकित्सक से संपर्क करने में किसी तरह की देरी नहीं करनी चाहिए। स्ट्रोक, ब्रेन ट्यूमर और ब्रेन हेमरेज या दुर्घटना होने पर तत्काल अस्पताल आपात स्थिति में भर्ती कराने की आवश्यकता होती है। हालांकि कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनमें टेलीमेडिसिन की मदद ली जा सकती है।
मेदांता मेडिसिटी के कैंसर इंस्टीट्यूट के रेडिएशन ओंकोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ़ तेजिन्दर कटारिया ने बताया कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए अस्पताल में कई तरह के स्थाई बदलाव भी किए गए हैं। अब स्वास्थ्य कर्मियों के लिए बहुत ही सावधानी के साथ हाथ धोना, मास्क, ग्लोब और हॉस्पिटल स्क्रब का प्रयोग करना अनिवार्य हो गया है। अस्पताल के कर्मचारियों के अलावा मरीजों तथा उनकी देखभाल करने वालों की जांच थर्मल सेंसर के जरिए प्रवेश द्वार पर ही की जाती है। उनसे बुखार, शरीर में दर्द, कोल्ड, कफ या अन्य श्वसन संबंधी लक्षणों के बारे में पूछा जाता है। अगर ऐसे लक्षण या इतिहास हैं तो आगंतुक को चिकित्सा परिसर के बाहर ही रहने तथा आगे की निर्देर्शो के लिए उन्हें संक्रामक रोग (आईडी) विशेषज्ञ से मिलने के लिए कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि अनुसार रोगियों को या तो अकेले और अनिवार्य होने पर एक परिचारक को अपने साथ अस्पताल लाने के लिए कहा जाता है और दोनों को मास्क पहनने के साथ-साथ उपचार परिसर में प्रवेश करते ही अपने हाथों को साफ करने के लिए कहा जाता है। वेटिंग हॉल में दो व्यक्तियों के बीच तीन फुट की दूरी होता है। रिसेप्शन के कर्मचारियों को मरीजों से अलग रखा जाता है। इसके लिए तीन फुट की दूरी के लिए क्यू-मैनेजर बनाया गया है। सुरक्षा मानदंडों को बनाए रखने के लिए, वेटिंग क्षेत्र से पत्रिकाओं, पुस्तकों और समाचार पत्रों को हटा लिया गया है। कई अस्पताल में हर प्रयोग के बाद हर मरीज द्वारा उपयोग में लाई गई सामग्रियों को साफ करने के लिए खास विधि लागू की है और हाउस कीपिंग कर्मचारी उस विधि का पालन कर रहे हैं। हर चार घंटे में हाउस कीपिंग कर्मचारी सोडियम हाइपोक्लोराइट (ब्लीच) की घोल से डोर-नॉब, हैंडल, कंप्यूटर मॉनिटर, बैनिस्टर, फ्लोर, चमकदार सतहों को साफ करते हैं। सभी प्रवेश द्वारों को खुला रखा जाता है ताकि लोगों द्वारा इनके छूने की आशंका कम से कम हो।
उधर, यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रमुख डॉ. कनिका अग्रवाल ने बताया कि अस्पतालों ने गर्भवती महिलाओं के लिए आवश्यक सावधानियां बरतनी शुरू कर दी है। अस्पताल में सामाजिक दूरी के नियमों को ध्यान में रखते हुए प्रवेश द्वार से लेकर ओपीडी क्षेत्र तक मरीजों की फ्लू स्क्रीनिंग होती है। प्रसूति वार्ड में प्रसव के दौरान पर्सनल प्रोटेक्टिव उपकरणों का समुचित इस्तेमाल होता है। हर डिलीवरी और सीजेरियन प्रक्रिया सम्पूर्ण पीपीई किट पहन कर की जाती हैं। लेबर रूम और ऑपरेशन थिएटर को नियमित रूप से सेनेटाइज किया जाता है।