Supreme court

दिल्ली डेस्क
प्रखर प्रहरी
दिल्लीः राजस्थान में जारी सियासी ड्रामे में सुप्रीम कोर्ट ने सस्पेंस बढ़ा दिया है। कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के फैसले खिलाफ दायर याचिका पर राजस्थान हाई कोर्ट को फैसला सुनाने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने जोशी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट से कहा कि वह 24 जुलाई को अपना आदेश पारित करें लेकिन उनका आदेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में सोमवार यानी 27 जुला्ई को सुनवाई करेगा।

आपको बता दें कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष जोशी को 24 अप्रैल तक कांग्रेस के बागी 29 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता मामले की कार्रवाई करने करने को कहा है, जिसके खिलाफ जोशी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसर जोशी ने सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 बागी कांग्रेसी विधायकों को अयोग्यता मामले में नोटिस जारी किया था जिसके बाद इन विधायकों ने उच्च न्यायलय में अपील की थी और विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट में आज इस मामले की सुनवाई के दौरान विधानसभा अध्यक्ष जोशी की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश की। वहीं कांग्रेस के बागी विधायकों की ओर से मुकुल रोहतगी और हरीश साल्वे पेश हुए। सुनवाई के दौरान सिब्बल ने दलील दी उच्च न्यायालय विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश जारी नहीं कर सकता। ऐसे में राजस्थान हाई कोर्ट का यह आदेश सही नहीं है कि वह बाकी विधायकों के खिलाफ 24 जुलाई तक कोई कार्रवाई न करें। उन्होंने किहोटो होलोहन मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के अयोग्या पर लिए गए फैसले की न्यायिक समीक्षा तो की जा सकती है, लेकिन लेकिन उससे पहले कार्यवाही के दौरान दखल नहीं हो सकता।

इसके बाद जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने सिब्बल से सवाल किया कि क्या स्पीकर यदि किसी विधायक को निलंबित करते हैं या अयोग्य ठहराते हैं तो कोर्ट दखल नहीं दे सकता? इसके जवाब में सिब्बल ने कहा कि जब विधानसभा अध्यक्ष किसी विधायक को अयोग्य ठहरा दें या निलंबित कर दें, तब न्यायिक समीक्षा की जा सकती है, लेकिन इससे पहले पहले कोई भी रिट विचार योग्य नहीं हो सकता है। इस पर जस्टिस मिश्रा ने सवाल किया कि क्या हाई कोर्ट ने इस पहलू पर आपको सुना है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अयोग्य ठहराए जाने के लिए क्या आधार लिया गया है। इस पर सिब्बल ने कहा कि ये विधायक पार्टी मीटिंग में शामिल नहीं हुए थे। ये पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। ये फ्लोर टेस्ट के लिए मांग कर रहे थे। इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि एक आदमी जो चुनाव में निर्वाचित हुआ है क्या उसे असहमति जताने का अधिकार नहीं है? अगर असहमति के आवाज को दबाया जाएगा तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। मामला सिर्फ एक दिन का है आप इंतजार क्यों नहीं कर लेते। तब सिब्बल ने कहा कि लेकिन हाई कोर्ट स्पीकर को निर्देश कैसे जारी कर सकता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि यानी आपकी दिक्कत निर्देश शब्द से है, लेकिन आदेश में हर जगह आग्रह शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

कोर्ट ने सिब्बल से सवाल किया कि क्या पार्टी बैठक में आने के लिए व्हीप जारी हो सकता है, जिसका जवाब देते हुए सिब्बल ने कहा कि मीटिंग के लिए इन विधायकों को नोटिस जारी किया गया था, न कि व्हीप। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि इस मामले को विस्तार से सुनने की जरूरत है। तब सिब्बल ने कहा कि आप उच्च न्यायलय के आदेश को निलंबित कर सकते हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि इसके लिए हमें मामले का परीक्षण करना होगा।

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