दिल्ली डेस्क
प्रखर प्रहरी
दिल्लीः भारत के उत्तरी हिस्सों में 21 जून, को सुबह 10:25 बजे से वलयाकार सूर्य ग्रहण दिखाई देगा। सूर्य ग्रहण अफ्रीका, एशिया और यूरोप के कुछ हिस्सों में भी देखा जा सकेगा, लेकिन ग्रहण का पीक भारत के उत्तरी हिस्से में दिखाई देगा और यह सुबह 10:25 बजे से शुरू होकर 12:08 बजे अधिकतम ग्रहण दिखाई देगा तथा 01:54 बजे समाप्त हो जाएगा।
इससे पहले वलयाकार ग्रहण 26 दिसंबर 2019 को दक्षिण भारत में और आंशिक ग्रहण के रूप में देश के विभिन्न हिस्सों से देखा गया था। अगला वलयाकार सूर्य ग्रहण भारत में अगले दशक में दिखाई देगा, जो 21 मई 2031 को होगा, जबकि 20 मार्च 2034 को पूर्ण सूर्य ग्रहण लगेगा। यह सूर्य ग्रहण 900 साल बाद लग रहा है। यह ग्रहण रविवार को लग रहा है, इसलिए इसे चूणामणि ग्रहण कहा गया है।
डीएसटी यानी विज्ञान एवं और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने बताया कि ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाएं विज्ञान के बारे में युवाओं को उत्साहित करने और बड़े पैमाने पर समाज को समझाने और वैज्ञानिक मनोभाव पैदा करने के असाधारण अवसर होते हैं।
वहीं आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान यानी एआरआईईएस या एरीज, इस सूर्य ग्रहण का सोशल मीडिया पर लाइव टेलिकास्ट करेगा। एरीज ने ग्रहण देखने के दौरान क्या करें और क्या न करें, इसको लेकर एक सूची तैयार की है, जो निम्नलिखित प्रकार है:-
- ग्रहण के दौरान इन सावधानियों को बरतने को कहा गया है: ग्रहण देखने के लिए और आंखों को किसी भी नुकसान से बचाने के लिए ग्रहण देखने वाले चश्मों या उचित फिल्टर्स के साथ कैमरे का इस्तेमाल करें। वलयाकार सूर्य ग्रहण देखने का सबसे सुरक्षित तरीका पिनहोल कैमरे से स्क्रीन पर प्रोजेक्शन या टेलिस्कोप है।
- ग्रहण के दौरान खाना-पीना, स्नान करना, बाहर जाने में कोई दिक्कत नहीं है। ग्रहण को देखना एक शानदार अनुभव होता है।
- इसमें यह भी कहा गया है कि नंगी आंखों से सूरज को न देखें, ग्रहण देखन के लिए एक्स-रे फिल्म्स या सामान्य चश्मों का इस्तेमाल न करें। इसके अलावा ग्रहण देखने के लिए पेंट किए ग्लास का भी इस्तेमाल न करें।
कब लगता है सूर्यग्रहण
-सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा (अमावस्या के चरण में) सूरज की आंशिक या पूरी रोशनी को रोक लेता है और उसी हिसाब से आंशिक, वलयाकार और पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। ग्रहण के दौरान चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है और घना अंधेरा छा जाता है जिसे उम्ब्रा और कम अंधेरे वाले क्षेत्र को पेनम्ब्रा के रूप में जाना जाता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण सूर्य ग्रहणों में सबसे दुर्लभ है। भले ही हर महीने अमावस्या आती हो, लेकिन हम ग्रहण को इतनी बार नहीं देख पाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पृथ्वी-सूर्य प्लेन के लिहाज से चंद्रमा की कक्षा लगभग 5 डिग्री के कोण पर झुकी हुई है। इस कारण सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी का संयोग एक दुर्लभ खगोलीय घटना के तौर पर दिखाई देता है।