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पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधा प्रदान करना संविधान के प्रावधानों के खिलाफः हाई कोर्ट
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पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधा प्रदान करना संविधान के प्रावधानों के खिलाफः हाई कोर्ट

संवाददाता

प्रखर प्रहरी

नैनीतालः उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं प्रदान करने को लेकर पारित अधिनियम के प्रावधानों को गलत करार दिया है। कोर्ट ने इसे संविधान के खिलाफ करार दिया हैं।
चीफ जस्टिस रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली बेंच ने देहरादून की एनजीओ रलेक की ओर से दायर जनहित याचिका पर आज यह महत्वपूर्ण फैसला दिया।

रलेक की ओर इस कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गयी थी। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि हाई कोर्ट के निर्णय के बाद सरकार को कानून बनाने का अधिकार नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्रियों को संविधान में अलग से दर्जा हासिल नहीं है। याचिकाकर्ता के वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने कहा कि कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अधिनियम की धारा 4ए और धारा 4सी भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के विरुद्ध है। साथ ही राज्य विधायिका का यह कदम अदालत के न्यायिक निर्णय को ओवर रूल करने तथा संविधान में अलग -अलग दिये गये अधिकारों का अतिक्रमण है। उन्होंने बताया कि कोर्ट ने यह भी कहा है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों से मामूली किराया वसूलना और मुफ्त में सुविधायें प्रदान करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। यही नहीं यह कानून संविधान के अनुच्छेद 202 से 207 के प्रावधानों का का भी उल्लंघन करता है। पूर्व मुख्यमंत्री बंगलों का लंबित किराया बाजार दर पर भुगतान करने के लिये उत्तरदायी हैं और राज्य सरकार लंबित राशि के जांच और गणना करने के लिये प्रतिबद्ध है।

रलेक की ओर से वर्ष 2010 में एक जनहित याचिका दायर कर राज्य के पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिल रही आवास एवं अन्य सुविधाओं को चुनौती दी गयी थी। पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकार की ओर से आवास तथा अन्य मद में जो सुविधा प्रदान की जा रही है, वह गलत है। तीन मई 2019 को पांचों पूर्व मुख्यमंत्रियों भगत सिंह कोश्यारी, नारायण दत्त तिवारी, भुवन चंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक तथा विजय बहुगुणा को छह माह के अंदर बाजार दर पर बंगलों का किराया एवं अन्य मदों का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

कोर्ट के निर्णय के कुछ समय बाद प्रदेश सरकार पूर्व मुख्यमंत्रियों को राहत देने के लिये सितम्बर में एक अध्यादेश लाई और 13 जनवरी 2020 को राज्यपाल की मंजूरी के बाद इसे कानूनी रूप दे दिया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से सरकार के इस कदम को दुबारा जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी।

Shobha Ojha

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