संवाददाता
प्रखर प्रहरी
दिल्लीः देश के लगभग 200 हिंदी के लेखकों ने कोरोना संकट में सरकार से देश के सभी नागरिकों को मुफ्त इलाज की सुविधा मुहैया कराने और समाज के वंचित वर्ग के लोगों पर विशेष ध्यान देने की मांग की है। साथ ही संकट की इस घड़ी में नियोक्ताओं से किसी को नौकरी से न हटाने की अपील की है।
प्रसिद्ध संस्कृति कर्मी अशोक वाजपेयी, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, अलका सरावगी, व्यास पुरस्कार से विभूषित ममता कालिया, प्रयाग शुक्ल, पुरुषोत्तम अग्रवाल, डॉ. अरविन्दाक्षण, शंभुनाथ, चंद्रकांत पाटील, लीलाधर मंडलोई, डॉ. सविता सिंह, बद्री नारायण और सुधा अरोड़ा सहित अन्य लेखकों ने एक संयुक्त बयान जारी कर यह अपील की। इन लोगों कहा कि आज हम लेखक गहरे दु:ख और शोक के साथ यह संवाद प्रेषित कर रहे हैं। देश और दुनिया का हर व्यक्ति इस प्राकृतिक विपत्ति से त्रस्त है। लाखों लोगों की अकालमृत्यु और त्रासद बीमारी ने सबको हिला दिया है। सामाजिक-आर्थिक भूकम्प और जीवन की भीषण बर्बादी मानव इतिहास की एक दारुण घटना है। ऐसे समय में हम सब अपने संगी मृतकों के प्रति श्रद्धा से सिर झुकाते हैं। सभी पीड़ितों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हैं और उन सभी चिकित्सकों,नर्सों, सुश्रूषा कर्मियों एवं सभी सेवकों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। आज हमारे ध्यान में वे लाखों- करोड़ों लोग हैं जो भूखे-प्यासे, बेघर, बेरोजगार एक घर, गाँव और आश्रय की आशा में हज़ारों किलोमीटर चलते रहे । हम सबने उन्हें देखा है। ऐसी विभीषिका मनुष्यता ने शायद इसके पहले कभी नहीं भोगी, लेकिन यह विपत्ति हमारी बनाई हुई है। करोड़ों लोगों की रोजी रोटी चली गयी। यह प्रकृति का कोप नहीं है।यह हमारी हुकूमत , हमारी शासन व्यवस्था और आर्थिक प्रणाली की देन है।
लेखकों ने कहा कि हमारे लोगों को सही इलाज और ऑक्सीजन भी मयस्सर नहीं।हमने कैसा समाज बनाया जहां इतनी गैरबराबरी और अन्याय है। समाज और व्यवस्था की पहचान विपत्ति में ही होती है। हर प्रकृतिक आपदा बताती है कि हम प्रकृति के साथ भी वैसा ही सलूक करते हैं जैसा खुद मनुष्य के साथ।और केवल वही समाज बचता है जहां बोलने की आजादी, आलोचना का अधिकार और सामुदायिक सद्भाव हो। लेखकों ने सरकार से मांग की है कि सरकारी अस्पताल बढ़ाये और बेहतर किए जाएं। स्वास्थ्य सेवाओं का सार्वजनीकरण हो। बीमा निर्भरता समाप्त हो । स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च सबसे ज्यादा हो। लेखकों ने कहा कि रोजगार का अधिकार मौलिक अधिकार बने।किसी की नौकरी न छूटे,न छंटनी या तालाबंदी हो। ऐसा होने पर हर व्यक्ति को सम्मान से जीने लायक मुआवज़ा-वेतन तत्काल दिया जाये।हमारे पास सबकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त धन है, बशर्ते मुट्ठीभर लोगों के लोभ पर लगाम लगायी जाये और देश को चलाने वाले मजदूरों के अधिकार बहाल किए जाएं।काम के घंटे घटा कर हम अधिक से अधिक लोगों को काम पर ला सकते हैं।