जनरल डेस्क
प्रखर प्रहरी
दिल्लीः शहरी वन क्षेत्र बढ़ाने के उदेश्य से सरकार ने ‘नगरवन’ नाम से एक योजना की शुरुआत की है। इसके तहत 200 शहरों को शामिल किया जायेगा। वन, पर्यावरण, एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पांच जून को इस योजना की शुरुआत की।
जावड़ेकर ने वेबिनार के जरिये महाराष्ट्र के पुणे नगर निगम द्वारा विकसित वार्जे स्मृति वन का लोकार्पण कर ‘नगरवन’ योजना की शुरुआत की। इस मौके पर उन्होंने बताया कि नगर निगम वाले 200 शहरों में इस योजना का विस्तार किया जायेगा। इसमें केंद्र सरकार की तरफ से कैम्पा फंड से आर्थिक मदद प्रदान की जायेगी। उन्होंने कहा कि हमारे यहां गांवों में काफी जंगल हैं, लेकिन शहरों में काफी कम हैं। शहरों में उद्यान हैं, लेकिन वन नहीं हैं। कुछ शहरों में जंगल हैं पर अधिक जंगल की जरूरत है। शहरों में वन क्षेत्र और बंजर बन चुकी भूमि के आँकड़े एकत्र किये जायेंगे और सार्वजनिक निजी भागीदारी से नगरवन योजना को जनांदोलन बनाया जायेगा।
उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने ढाई से तीन अरब टन ‘कार्बन सिंक’ बनाने का फैसला किया है। नगरवन योजना इसमें कारगर होगी। जहां अच्छा वन लगेगा उनको पुरस्कार देने पर भी विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि भारत ने मात्र 2.5 प्रतिशत भूमि और चार प्रतिशत प्राकृतिक जन संसाधन के साथ 16 प्रतिशत जनसंख्या तथा 16 प्रतिशत पशुधन के दबाव के बावजूद दुनिया की आठ फीसदी जैव विविधता का संवर्द्धन कर साबित कर दिया है कि हम कम संसाधन में भी प्रकृति की रक्षा कर सकते हैं। यह भारतीय संस्कृति की प्रकृति है जिसमें हम पशु, पक्षी और पेड़ों की भी पूजा करते हैं और उनका संरक्षण करते हैं। हर गांव में एक वन ऐसा होता है जिसमें कटाई-चराई नहीं होती।
संयुक्त राष्ट्र की संधि यूएनसीसीडी के कार्यकारी निदेशक इब्राहिम थिआव ने पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत के प्रयासों की तारीफ की। उन्होंने कहा कि विकास और विकास को समर्थन देने में धरती की क्षमता के बीच संतुलन कायम रखने में हम सब अपना योगदान दे सकते हैं। कोविड-19 ने एक बार फिर यह बता दिया है कि हम किस हद तक प्रकृति पर निर्भर हैं। लंबे समय तक हमारी यह सोच रही कि हम हमेशा के लिए प्रकृति का दोहन कर सकते हैं और इसके संसाधन असीमित हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और जानवरों में रहने वाले वायरसों का संक्रमण इंसानों में फैलने के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं। अब यह समझने का समय आ गया है कि प्रकृति को जितनी हमारी जरूरत है उससे कहीं ज्यादा हमें प्रकृति की जरूरत है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडर्सन ने कहा कि कोविड-19 के जरिये धरती ने अपना सबसे कड़ा संदेश दिया है कि हमें अपने तौर-तरीकों में बदलाव करना होगा। मानवीय गतिविधियों ने जमीन के लगभग पूरे हिस्से को बदल दिया है। हम उन महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकियों को बदल रहे हैं जिन पर जैव विविधता आश्रित है। हम जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 जैसी नयी बीमारियों को न्योता दे रहे हैं। प्रकृति की चेतावनी पर ध्यान देने का समय आ गया है।
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