बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी, मानव विकास सूचकांक, प्रति व्यक्ति आय और संसाधनों की कमी इस बात की तरफ इशारा करती है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की कितनी सख्त जरूरत है
2050 में भारत की जनसंख्या 160 करोड़ के आकड़े को पार कर जाएगी। तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश के आर्थिक विकास और हमारे संसाधनों के लिए बेहद खतरनाक है। देश में दो बच्चों की नीति बनाने की मांग एक लंबे वक्त से उठ रहे हैं। मगर राजनीतिक कारणों के चलते इस माकूल मांग पर किसी भी सरकार ने कानून बनाना वाजिब नहीं समझा। सत्तर के दशक में जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार ने परिवार नियोजन की नीति को बढ़ावा देना शुरू किया था। मगर यह योजना भी वक्त के साथ लालफीता शाही की भेंट चढ़ गई। सरकार ने अगर वक्त रहते जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन पर सशक्त कानून नहीं बनाया तो आने वाले वक्त में देश की स्थिति बहुत खराब हो सकती है। भारत के पास संसाधनो के सीमित भंडार है। जबकि उसके पडोसी देश चीन के पास भारत से तीन गुणा अधिक जमीन है और अपार संसाधनों के भंडार है। चीन आज दुनिया को इसलिए आंख दिखाता है क्योंकि उसने अपने यहां कड़ा जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू कर रखा है। हमारी सरकार भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था वाला देश बनाने की दिशा में काम कर रही है। जिसकी राह में बढ़ती हुई आबादी एक बड़ा रोडा है। चिंताजनक बात यह हैं कि भारत के एक समुदाय में जन्मदर तो कम हो रही है, मगर दूसरे समुदाय की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब लालकिले के प्राचीर से जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा उठाया तो देश में इस बात को लेकर आस बंधी थी कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर कोई प्रभावी कानून लाएगी।हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। इससे पूर्व 20 फरवरी 2000 में तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने न्यायमूर्ति वेंकटचलैया के नेतृत्व में संविधान समिक्षा आयोग का गठन किया था। इस आयोग के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस वेंकटचलैया थे जबकि जस्टिस सरकारिया, जस्टिस जीवन रेड्डी और जस्टिस पुन्नैया इसके प्रमुख सदस्य थे, साथ ही इस आयोग में पूर्व अटॉर्नी जनरल केशव परासरन, सोली सोरोब जी, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा, सांसद सुमित्रा महाजन, वरिष्ठ पत्रकार सीआर ईरानी और पूर्व राजदूत आबिद हुसैन भी इस आयोग के सदस्य थे। इस आयोग व्दारा चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार और जनसंख्या नियंत्रण के लिए सुझाव दिए थे। इसी आयोग द्वारा संविधान में आर्टिकल 47 ए जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था। इससे पहले भी 1976 में 42 वें संविधान संशोधन व्दारा संविधान की सातवीं सूची और तीसरी सूची (जिसे संवर्ती सूची कहा जाता है) में जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन वाक्य जोडा गया था। 42 वें संविधान संशोधन द्वारा केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का अधिकार दे दिया था। मगर राज्यों ने राजनीतिक कारणों के चलते इसमें रूचि नहीं दिखाई। साल 1951 में भारत की आबादी 10 करोड़ 38 लाख थी जो साल 2011 में 121 करोड़ के पार जा पहुंची। देश में जनसंख्या किसी महामारी की तरह बढ़ती जा रही है। अगर इस पर नियंत्रण नहीं लगाया गया तो भारत के विकास का पहिया थम जाएगा और हमें अपने संसाधनों की पूर्ति के लिए दुनिया के दूसरे देशों की तरफ ताकना पड़ेगा। आज देश में दो बच्चों की नीति को लागू करने का वक्त आ गया है। सरकार को जनसंख्या नियंत्रण कानून में व्यवस्था करनी चाहिए कि जो व्यक्ति दो बच्चों की नीति का पालन नहीं करता उसे सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा। दो बच्चों की नीति का उलंघन करने वालों को चुनाव लड़ने से रोकना, मताधिकार का इस्तेमाल करने से रोकना, सरकारी नौकरियों में आवेदन करने से रोकना, सरकारी सब्सिडी का लाभ लेने से रोकना और बीपीएल राशन कॉर्ड हासिल करने से रोकने के कदम उठा कर ऐसे लोगों को हतोत्साहित करने की जरूरत है। जनसंख्या नियंत्रण कानून किसी भी समाज के लिए बुरा बात नहीं है। लिहाजा किसी भी समुदाय द्वारा इसका विरोध करना न्याय संगत नहीं है। दरअसल जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग जब भी देश में उठती है तो मुस्लिम समुदाय इसे स्वैच्छिक कहना शुरू कर देता है। जबकि किसी भी कानून में स्वैच्छिक शब्द ही उसके वजूद को खत्म कर देता है।…
नरेन्द्र कुमार वर्मा, लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।
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