Deprecated: The PSR-0 `Requests_...` class names in the Requests library are deprecated. Switch to the PSR-4 `WpOrg\Requests\...` class names at your earliest convenience. in /home1/prakhndx/public_html/wp-includes/class-requests.php on line 24
कोरोना के मद्देनजर लागू लॉकडॉउन में चिंतामुक्त रहे दिल्लीवाले
Subscribe for notification

कोरोना के मद्देनजर लागू लॉकडॉउन में चिंतामुक्त रहे दिल्लीवाले


दुनियाभर में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। दुनिया में बहुत सी ऐसी मिसाल है जिन्होंने अपनी आवश्यकता के लिए कोई ऐसी चीज का निर्माण किया जिसका फायदा बाद में पूरी दुनिया को मिला। ठीक इसी तरह भारतीयों के सामने अगर कोई समस्या अथवा बाधा आती है तो उसे रास्ते से हटाने के लिए वह कोई न कोई अवसर या तरीका तलाश ही लेते हैं। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद सारी दुनिया में लॉकडॉउन है। भारत में भी लॉकडॉउन की वजह से लोग अपने घरों में बंद है। कुछ लोग इस लॉकडॉउन का आनंद ले रहे है और कुछ लोग इसे लेकर भारी तनाव और परेशानी में है। लॉकॉडॉउन के दौरान एक सकारात्मक रिपोर्ट सामने आई।
1-वर्क-फॉर होम- लॉकडॉउन के बाद भारत के उन पेशेवरों ने अपना काम घर से करना शुरू किया जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्यरत थे। टेक्नोलॉजी के इस युग में आज इंटरनेट ऐसे बहुत से फीचर मौजूद है जिनसे आप दुनिया के किसी भी कोने में बैठ कर अपने घर या दफ्तर का कोई भी काम कर सकते है।
2-लैंगिक समानता में बढोत्तरी- लॉकडॉउन के दौरान कामकाजी पिता घर पर ही अपने बच्चों के बीच रहे। जहां पति-पत्नी दोनों ही नौकरीपेशा थे। वहां उन दोनों ने एक साथ मिलकर बच्चों को संभाला। इस अल्पअवधि में अधिकांश पिता यह कहते हुए पाएं गए कि तुम घर के बाकी काम निपटा लो बच्चों को मैं संभालता हूं।
3-पुलिस के प्रति बदला नजरिया- लॉकडॉउन के दौरान देशभर के पुलिसकर्मियों ने सुनसान सड़कों पर रातभर गुजरते हुए लोगों को खाना खिलाया और उन्हें घर तक पहुंचाने का काम किया। देश के कई हिस्सों से ऐसी तस्वीरे सामने आई जहां पुलिसकर्मी कई-कई दिनों से अपने घर नहीं जा पाएं। चेहरे पर मॉस्क लगाए पुलिस कर्मी फिल्मी गीत सुनाकर लोगों से अपने घरों में रहने की अपील कर रहे थे।
4-डॉक्टरों और नर्सों का जज्बा- लॉक-डॉउन के दौरान जब लोग अपने घरों में थे। तब देश के शहरों, कस्बों और महानगरों के डॉक्टर और नर्स सीमित संसाधनों के बाद कोरोना से संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे थे। देशभर के लोगों ने डॉक्टरों और नर्सों के उस चेहरे को सोशल मीडिया पर देखा जिसमें वह अस्पताल की कुर्सी पर ही बैठकर झपकी ले रहे थे।
5-ई-गवर्नेंस का लाभ- लॉकडॉउन के वक्त लोगों के लिए राज्य सरकारों ने अनेक योजनाओं का घोषणा की। जिन लोगों के पास स्थायी राशनकॉर्ड नहीं थे उन्हें मोबाइल पर ही एक फॉर्म भरने से राशन कॉर्ड मिल गया। लॉकडॉउन के दौरान जरूरी काम से बाहर निकलने वाले लोगों को मोबाइल पर ही कर्फ्यू पास जारी किया गया।
6-प्रदूषण में कमी- लॉकडॉउन के वक्त देश के अधिकांश महानगरों के प्रदूषण में भारी कमी देखी गई। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलूरू, अहमदाबाद, जयपुर, चंडीगढ़, पटना, रांची, लखनऊ, भोपाल, जबलपुर, कानपुर और भुवनेश्वर जैसे महानगरों में रोज आने वाली लाखों गाड़ियों के धुएं से हवा ने राहत की सांस ली।
7-देश ने दिखाई एक जुटता- लॉक-डॉउन के बाद देशभर में करोडों लोग अपने घरों में कैद हो गए। इससे पहले इतने दिन तक भारतीय कभी घरों में नहीं रहे थे। ऐसे में जब प्रधानमंत्री ने कोविड-19 से लड़ने वाले वॉरियर्स के सम्मान में थाली बजाने और दीया जलाने का आग्रह किया। तो सारा देश एक साथ उठ खड़ा हुआ।
8-नई ऊर्जा का संचार- लॉकडॉउन के बाद उन युवाओं ने राहत की सांस ली जो रोज भागम-भाग भरी जिंदगी से दोचार हो रहे थे। 50 दिन घरों में रहने से युवाओं के अंदर नई ऊर्जा का संचार हुआ। अधिकांश युवाओं ने इस दौरान घर पर ही अपनी सेहत, रोजगार, परिवार और मित्रों को लेकर नई योजनाएं बनाई।
9-सोशल डिस्टेंस का अर्थ समझा- भारतीयों में एक बात समान है कि वह किसी भी अजनबी के साथ पूरे मनोयोग से मिलते है। हाथ मिलता है, गले लगाते है और उन्हें घर पर आमंत्रित करते है। मगर कोविड-19 के प्रभाव के बाद अधिकांश भारतीयों ने सोशल डिस्टेंस के अर्थ को समझा और साफ-सफाई पर खास ध्यान दिया।

10-सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाहन-लॉकडॉउन के बाद देशभर के अनेक छोटे बड़े शहरों में गरीब लोगों ने भी मॉस्क सिलकर मुफ्त में लोगों को दिए। लॉकडॉउन से प्रभावित लाखों गरीब लोगों को सामाजिक संगठनों ने दो वक्त का भोजन कराया और उन्हें राशन देने का काम किया।

11-सकारात्मक सोच का विकास- लॉकडॉउन के दौरान जो लोग घरों में बैठे भयभीत हो रहे थे। उन्हें सोशल मीडिया से मिलने वाली सकारात्मक खबरों से बहुत राहत मिली। ऐसे वक्त में लोगों ने अपने भय को भुलाकर एक नई सकारात्मक सोच को अपने भीतर विकसित किया। घर में बैठकर कैसे व्यवस्थित काम किया जा सकता है लोगों ने यह भी सिखा।
12-तनाव और अवसाद से मुक्ति- लॉकडॉउन के दौरान पहले लोग एकाएक तनाव में आ गए थे। घर परिवार की जरूरतों और दूसरी चीजों को लेकर उन्हें चिंता थी मगर जल्दी ही लोगों को समझ में आया कि किस तरह से सीमित संसाधनों के साथ कैसे घर चलाया जाता है। इस दौरान घर की महिलाओं ने पुरुषों को बाहर जाने से मना किया और कहा कि उनके पास महिने भर का बंदोबस्त है बेकार का तनाव न लें।

नरेन्द्र कुमार वर्मा, लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।

Shobha Ojha

Recent Posts

खालिस्तानी पन्नू की हत्या की साजिश का आरोपी विकास ने बताया जान को खतरा, अदालत से लगाई पेशी से छूट देने की गुजारिश

दिल्लीः खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में आरोपी विकास यादव ने अपनी जान को खतरा बताया…

20 hours ago

शोध पर लालफीताशाही भारी, आजकल सारा उद्देश्य पेट भरने का, चार प्रतिशत जनसंख्या वालों को 80 प्रतिशत संसाधन चाहिएः डॉ. भागवत

संवाददाताः संतोष कुमार दुबे गुरुग्रामः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि  आज कर…

3 days ago

PoK में नहीं होगा चैंपियंस ट्रॉफी का टूर, ICC ने पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को मना किया

स्पोर्ट्स डेस्क8 ICC यानी इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल ने पीओके यानी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चैंपियंस ट्रॉफी का टूर…

3 days ago

अब छात्र दो साल में ही पूरा कर सकेंगे ग्रेजुएशन, UGC अगले साल तक ला सकता है नई पॉलिसी; कमजोर विद्यार्थी 05 साल तक बढ़ा सकेंगे कोर्स ड्यूरेशन

दिल्लीः अब विद्यार्थी दो साल में ही ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर सकेंगे। UGC यानी यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन अगले अकादमिक…

3 days ago

अहिल्याबाई होलकर ने नष्ट हो चुके राष्ट्र के सम्मान एवं गौरव को स्थापित करने का काम कियाः कृष्ण गोपाल

संवाददाताः संतोष कुमार दुबे दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने गुरुवार को कहा है कि पुण्यश्लोक…

3 days ago