बिजनेस डेस्क

दिल्लीः वैश्विक महामारी कोरोना के मद्देनजर लागू लॉकडाउन के बीच अपने स्वाद के लिए मशहूर दशहरी ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बाजारों में दस्तक दे दी है। यह दशहरी उत्तर भारतीय नहीं बल्कि दक्षिण भारतीय है। पीले रंग का बंगनापल्ली और चटक सिंदूरी रंग का स्वर्णरेखा तो वर्षों से राजधानी के बाजारों में आता रहा है, लेकिन इस बार दशहरी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर लोगों को हैरान कर दिया है।

सीआईएसएच के निदेशक शैलेन्द्र राजन ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , ओडिशा और महाराष्ट्र के किसान उत्तर भारतीय आम दशहरी के पौधे लगाने में दिलचस्पी ले रहे थे। बड़ी संख्या में इनके पौधे इन राज्यों में भेजे गए थे। उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में आम की फसल उत्तर भारत से पहले तैयार हो  जाती हैं। बंगनापल्ली जिसे सफेदा नाम से भी जाना जाता है, 70 से 100 रुपए किलो और अपने रंग से लुभानेवाले स्वर्णरेखा का भी लगभग यही दाम है लेकिन स्वाद में  यह अपने  रंग के विपरीत है । दशहरी अपने आकर्षक पीले रंग में तो नहीं है लेकिन यह फिलहाल पचास रुपए किलो की दर से उपलब्ध है ।
आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली बाजार में मार्च-अप्रैल में ही आने लगता है और मिल्कशेक और दूसरे व्यंजनों में लोग इसका इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। अधिक लाभ कमाने के चक्कर में दक्षिण भारत के किसान इसे बहुत जल्दी तोड़ देते हैं और गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते हैं । फलस्वरूप फलों को खाने के बजाय आम का स्वाद लेने के लिए लोग इसे मिल्कशेक और दूसरे व्यंजनों में मिलाकर प्रयोग करते हैं। समय के साथ सफेदा आम भी गुणवत्ता वाला हो जाता है । देखने में तो यह आकर्षक होता है और जल्दी खराब नहीं होने के कारण इसे काफी दिनों तक रखा जा सकता है ।
बहुत ही आकर्षक लाल रंग के कारण स्वर्णरेखा आम की भी काफी मांग रहती है । देखने में यह आम खूबसूरत है, लेकिन स्वाद रंग रूप के अनुरूप नहीं होता है । यह आम लखनऊ और दिल्ली के बाजारों में  काफी मात्रा में आ चुका है । आंध्र प्रदेश तथा ओडिशा के दक्षिण भारत से सटे हिस्से से स्वर्णरेखा और बंगनापल्ली, दोनों की ही आवक उत्तर भारत के बाजारों में हर साल लगभग तय है । उत्तर भारतीयों को दशहरी  के मुकाबले दूसरे दर्जे का स्वाद रखने वाले इन आमों को खाकर ही आजकल  काम चलाना पड़ता है ।
आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , महाराष्ट्र , गुजरात और अन्य स्थानों पर दशहरी लगाने का मुख्य कारण इस किस्म की कई खासियत है । यद्यपि यहां पर दशहरी का आकार लखनऊ के मुकाबले बहुत छोटा होता है परंतु स्वाद में काफी समानता एवं लोगों में बढ़ती इसकी लोकप्रियता के कारण किसानों ने नए बागों में इसे लगाना प्रारंभ कर दिया है | दशहरी  की उपज इन प्रदेशों में काफी अच्छी है जिसके कारण किसान उससे संतुष्ट है ।आंध्र प्रदेश में उत्पादित दशहरी पकने लगी है और उसका दिल्ली के बाजार में लखनऊ के फलों से पहले आ जाना स्वाभाविक है । आंध्र प्रदेश , महाराष्ट्र , उड़ीसा एवं गुजरात के बहुत से क्षेत्रों में दशहरी का उत्पादन होना शुरू हो गया है और यह सभी स्थान बाजार में मई के पहले पखवाड़े में ही दशहरी उपलब्ध कराने की सामर्थ्य रखते हैं । आमतौर पर मलिहाबाद के किसान इस बात से आशंकित रहते हैं कि दक्षिण भारतीय दशहरी उनके बाजार पर कब्जा ना जमा ले ।

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