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सीएए, एनपीआर और एनआरसी तीनों अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं

नागरिकता संशोधन कानून का विरोध बिना किसी आधार के देश में जारी है। खासबात यह हैं कि इस कानून का केवल मुस्लिमों द्वारा ही विरोध किया जा रहा है। जबकि केंद्र सरकार बार-बार विभिन्न माध्यमों से इस बात को स्पष्ट कर चुकी है कि देश में नया नागरिकता संशोधन कानून किसी भी तरह से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नहीं है। फिर भी विपक्षी दलों के बहकावे और वामदलों के उकसावे पर इस कानून का विरोध हो रहा है। इसी बीच केंद्र सरकार ने भारत की जनगणना किए जाने की भी घोषणा कर दी। जनगणना का काम देश में एक सामान्य प्रक्रिया है जो सरकार द्वारा कराई जाती रही है। जनगणना के साथ ही सरकार इस बार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के लिए भी आंकड़े जुटाने का काम करेगी। साल 2004 में मनमोहन सिंह सरकार ने एनपीआर को शुरू किया था। एनपीआर को मोदी सरकार अपडेट करने का काम कर रही है। सामान्य तौर पर देशभर के सभी नागरिकों की एक सूची सरकार द्वारा बनाई जाती है। इसके तहत जो भी व्यक्ति पिछले छह माह से देश के किसी भी हिस्से में रह रहा है या अगले छह माह तक वहां रहने का इरादा रखता है, तो उसका ब्योरा एनपीआर में दर्ज किया जाएगा। खासबात यह है कि यदि कोई विदेशी नागरिक देश के किसी भी हिस्से में छह माह से ज्यादा समय से रह रहा है तो उसका भी ब्योरा एनपीआर में दर्ज किया जाएगा। देशभर के गांव, कस्बों, शहरों, उपनगरों और महानगरों से आंकड़े जुटा कर एनआरपी का राष्ट्रीय स्तर का डाटाबेस भारत सरकार इस लिहाज से तैयार करती है कि देश के किस हिस्से में किस तरह की विकास योजनाओं और मूलभूत योजनाओं की जरूरत है। असम को छोड़कर सरकार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एनआरपी के आंकड़े जुटाने का काम अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 तक करेगी। अब इसको लेकर भी एक विशेष समुदाय के भीतर बैचेनी देखी जा रही है जबकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है और किसी को भी इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है। फिर भी कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इसे भी सीएए के साथ जोड़ कर लोगों को भ्रमित करना शुरू कर दिया है।
अब बात करते है एनआरसी यानि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का सीधा का मकसद देश में अवैध तौर पर रहने वाले लोगों को चिह्नित करना है। अवैध रुप से भारत के विभिन्न हिस्सों में घुस आए घुसपैठियों के पास मौजूद दस्तावेजों को इस प्रक्रिया में जांचा और परखा जाएगा और जिनके पास वैध दस्तावेज नहीं होंगे वे एनआरसी की सूची में शामिल नहीं होंगे। दरअसल देश में पहली बार 1951 में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बना था जब बंग्लादेश में आंतरिक संघर्ष का भीषण दौर चर रहा था और बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठिए असम और पश्चिम बंगाल में घुस आए थे। असम के निवासियों ने घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए बड़ा आंदोलन शुरू किया जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश किया कि असम में रहने वाले एक-एक व्यक्ति की गणना करके एक नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बनाया जाए और घुसपैठियों को चिह्नित कर उन्हें उनके मूल देश में वापस भेजा जाए। 2004 में यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने असम में एनआरसी की प्रक्रिया को शुरू किया था और इसे देश की आंतरिक सुरक्षा और संप्रभुता के लिए जरूरी बताया था। मगर इस बात को अब हास्याप्रद ही कहा जाएगा कि कांग्रेस अपने ही बनाए कानून को लागू किए जाने का विरोध कर रही है और देशभर में अशांति का माहौल बना रही है।
अगर बात करें नागरिकता संशोधन कानून यानि सीएए की तो इसे लेकर जो भ्रम देशभर में फैलाये जा रहे हैं उसका कोई जमीनी आधार नहीं है। खालिस राजनीतिक आधार पर ही इसका विरोध किया जा रहा है जबकि मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि यह कानून देशभर में लागू हो चुका है और सरकार इससे कतई पीछे नहीं हटेगी। सीएए की प्रक्रिया की बात करें तो सीधे तौर पर यह कानून अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बंग्लादेश से धर्म के आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आए हिंदु , ईसाई, बौध्द, जैन, पारसी और सिखों को भारत की नागरिकता दिए जाने की गारंटी प्रदान करता है। मोदी सरकार ने इस संदर्भ में उन दस्तावेजों को भी सार्वजनिक किया जो कांग्रेस के बड़े नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के नेता लियाकत अली खान के बीच हुए समझौते से संबंधित है। जिसमें कहा गया था कि भारत पाकिस्तान से प्रताड़ना का शिकार हुए हिंदु और दूसरे गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देगा। मगर राजनीतिक खेल देखिए कांग्रेस अपने ही सबसे बड़े नेता द्वारा किए गए समझौते के अनुपालन का भारी विरोध कर रही है। एक माह के भीतर ही देशभर की जनता इस कानून के सभी पहलुओं को भलीभांती समझ चुकी है और अधिकांश लोगों का मानना हैं कि कांग्रेस सीएए को लेकर देश में माहौल खराब करने में सबसे आगे है। दिलचस्प बात यह हैं कि इन तीनों की प्रक्रियाओं का आपस में एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है कम से कम पढ़ेलिखे लोगों को तो यह छोटी सी बात समझ लेनी चाहिए।

लेखकः नरेंद्र वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार

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