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नागरिकता कानून का विरोध समझ से परे... - Prakhar Prahari
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नागरिकता कानून का विरोध समझ से परे…

नागरिक संशोधन अधिनियम 2019 राष्ट्रपति के 12 दिसंबर को हस्ताक्षर करने के बाद देश में लागू हो चुका है। इस अधिनियम के लागू होने के बाद उन गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया जो 31 दिसंबर 2014 तक शरणार्थियों के तौर पर भारत आए हैं। नए नागरिकता संशोधन अधिनियम के अंर्तगत पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आए सिख, पारसी, जैन,बौद्ध,ईसाई और हिंदुओं को भारत की नागरिकता मिलेगी जो धार्मिक पड़ताड़ना और सामाजिक भेदभाव का शिकार होने के बाद भारत आए हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने चुनाव के दौरान इस बात की घोषणा की थी कि भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए हिंदुओं और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय को भारत की नागरिकता देने का काम किया जाएगा। इन तीनों ही देशों में गैर मुस्लिम बीते सात दशक से बेहद नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। इन देशों में गैर मुस्लिमों के साथ होने वाली अनेक घटनाएं अंतराराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय रही है। तीनों ही मुल्कों में रहने वाले गैर मुस्लिमों के लिये भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जो उन्हें जीने का अधिकार दे सकता हैं। भारत में नए नागरिकता कानून के लागू होने के बाद विपक्षी पार्टियों ने इसे संविधान के खिलाफ बता कर देश में एक नया बवाल खड़ा कर दिया है। विपक्ष ने इस कानून को देश के मुस्लिमों के खिलाफ बता कर देशभर के मुस्लिमों को सड़क पर धकेल दिया है। विपक्ष का कहना है कि नया नागरिकता कानून मुस्लिमों के साथ ही देश के पूर्वोत्तर के राज्यों के भी खिलाफ हैं। जबकि नए कानून में साफ कहा गया है कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों को संविधान की छठी अनुसूचि के तहत जो संवैधानिक गारंटी प्रदान की गई हैं उस पर कोई आंच नहीं आएगी। दरअसल देश के किसी भी कानून के बारे आम जनता को बहुत ज्यादा जानकारी नहीं होती। मीडिया अथवा दूसरे माध्यमों से लोगों को जो अधकचरी जानकारी मिलती है उसी के आधार पर आम जनता अपनी राय बना लेती है। नागरिकता कानून के बारे में भी यही बात सामने आईं। देश के विपक्ष ने जैसे ही इस कानून को राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) से जोड़ कर मुस्लिमों को बरगलाया है और देश में आग लगाने का काम किया है। एनआरसी का काम अभी केवल असम में चल रहा है जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वहां लागू किया जा रहा है। दरअसल बीते पांच दशकों से असम सहित देश के कई हिस्सों में अवैध रूप से बंगलादेश और म्यांमार से आने वाले मुस्लिम घुसपैठियों ने डेरा जमा रखा है। इन अवैध घुसपैठियों की वजह से असम की सामाजिक और संस्कृति के लिये बड़ा खतरा पैदा हो गया। जिसके बाद केंद्र सरकार ने अवैध नागरिकों की पहचान के लिये सारे देश में एनआरसी लागू करने की घोषणा की है। मगर फिलहाल देश में न तो एनआरसी का मसौदा तैयार हुआ है और न ही इसकी कोई गाइड लाइन बनी है। लिहाजा सीएए से एनआरसी को जोड़ना न तो न्याय संगत है और न ही इसे लेकर देश के मुस्लिम समुदाय की किसी भी तरह की आशंका उचित है। एक छोटे से उदारहण से इस बात को अच्छी तरह समझा जा सकता है कि जब देश में मनमोहन सिंह सरकार ने सभी नागरिकों के लिये आधार कार्ड अनिवार्य किया तो मुस्लिम समुदाय के किसी भी व्यक्ति को रत्ती भर भी परेशानी नहीं हुई। ऐसे में एनआरसी को लेकर देश के मुस्लिमों की किसी भी तरह की आशंका निराधार है। नया नागरिकता कानून भी किसी भी भारतीय मुस्लिम की नागरिकता पर कोई सवाल खड़ा नहीं करता, फिर बिना वजह इसे लेकर देश का माहौल क्यों खराब किया जा रहा है। यह बात समझ से परे हैं।
लेखकः नरेंद्र वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

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