आज का हिन्दू पंचांग
दिनांक 18 दिसम्बर 2019
दिन – बुधवार
विक्रम संवत – 2076
शक संवत – 1941
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – पौष (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार मार्गशीर्ष)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – सप्तमी रात्रि 11:31 तक तत्पश्चात अष्टमी
नक्षत्र – पूर्वाफाल्गुनी रात्रि 12:01 तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी
योग – प्रीति रात्रि 10:15 तक तत्पश्चात आयुष्मान्
राहुकाल – दोपहर 12:23 से दोपहर 01:43 तक
सूर्योदय – 07:10
सूर्यास्त – 17:59
दिशाशूल – उत्तर दिशा में
*व्रत पर्व विवरण –
विशेष – सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
प्राणों की रक्षा हेतु मंत्र/रक्षा कवच बनाने के लिए
हनुमानजी जब लंका से आये तो राम जी ने उनको पूछा कि , रामजी के वियोग में सीताजी अपने प्राणो की रक्षा कैसे करती हैं ?
तो हनुमान जी ने जो जवाब दिया उसे याद कर लो । अगर आप के घर में कोई अति अस्वस्थ है, जो बहुत बीमार हैं संत , अब नहीं बचेंगे ऐसा लगता हो, सभी डॉक्टर दवाईयाँ भी जवाब दे गईं हों, तो ऐसे व्यक्ति की प्राणों की रक्षा इस मंत्र से करो..उस व्यक्ति के पास बैठकर ये हनुमानजी का मंत्र जपो..तो ये सीता जी ने अपने प्राणों की रक्षा कैसे की ये हनुमानजी के वचन हैं..
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ॥
इसक अर्थ भी समझ लीजिये ।
‘ नाम पाहरू दिवस निसि ‘ ….. सीता जी के चारों तरफ आप के नाम का पहरा है । क्योंकि वे रात दिन आप के नाम का ही जप करती हैं । सदैव राम जी का ही ध्यान धरती हैं और जब भी आँखें खोलती हैं तो अपने चरणों में नज़र टिकाकर आप के चरण कमलों को ही याद करती रहती हैं ।
तो ‘ जाहिं प्रान केहिं बाट ‘….. सोचिये की आप के घर के चरों तरफ कड़ा पहरा है । छत और ज़मीन की तरफ से भी किसी के घुसने का मार्ग बंद कर दिया है, क्या कोई चोर अंदर घुस सकता है..? ऐसे ही सीता जी ने सभी ओर से श्री रामजी का रक्षा कवच धारण कर लिया है ..इस प्रकार वे अपने प्राणों की रक्षा करती हैं । तो ये मंत्र श्रद्धा के साथ जपेंगे तो आप भी किसी के प्राणों की रक्षा कर सकते हैं ।
रक्षा कवच बनाने के लिए
दिन में 3-4 बार शांति से बैठें , 2-3 मिनिट होठो में जप करे और फिर चुप हो गए। ऐसी धारणा करें की मेरे चारो तरफ भगवान का नाम मेरे चारो ओर घूम रहा हें। भगवान का नाम का घेरा मेरी रक्षा कर रहा है।
तुलसी मंत्र
तुलसी माता पर जल चढ़ाते हुए इस मंत्र को बोलें
महाप्रसाद जननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि जरा मुक्तं तुलसी त्वाम् नमोस्तुते
इस मंत्र का अर्थ है
हे भक्ति का प्रसाद देने वाली माँ! सौभाग्य बढ़ाने वाली, मन के दुःख, और शरीर के रोग दूर करने वाली तुलसी माता को हम प्रणाम करते
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